हम पंछी परदेशी मुसाफिर,
आये है सैलानी।
दोहा – कबीर मन पंछी भया,
भावे तो उड़ जाय,
जो जैसी संगती करें,
वो वैसा ही फल पाय।
हम वासी उन देश के,
जहाँ जाति वरण कुल नाहीं,
शब्द से मिलावा हो रहा,
देह मिलावा नाहीं।
हम पंछी परदेशी मुसाफिर,
आये है सैलानी,
रेवूँ तुम्हारी नगरी में,
जब लग है दाना पानी,
हम पँछी परदेसी मुसाफ़िर,
आये हैं सैलानी।bd।
खेल पर खेल तू खूब कर ले,
आखिर है चौगानी,
यो अवसर थारो फेर नहीं आवे,
फेर मिलण को नाहीं,
हम पँछी परदेसी मुसाफ़िर,
आये हैं सैलानी।bd।
चेतन होकर चेत ज्यो भाई,
नहीं तो तासों हैरानी,
देखो दुनियाँ यूँ चली जावे,
जैसे नदियों का पानी,
हम पँछी परदेसी मुसाफ़िर,
आये हैं सैलानी।bd।
परदेशी से प्रीत लगाईं,
डूब गई जिंदगानी,
बोल्यो चाल्यो माफ़ करज्यो,
इतनी रखना मेहरबानी,
हम पँछी परदेसी मुसाफ़िर,
आये हैं सैलानी।bd।
मनुष्य जनम महा पदार्थी,
जैसे पारस की खानी,
कहत कबीरा सुनों भाई साधो,
वाणी कोई बिरले जाणि,
हम पँछी परदेसी मुसाफ़िर,
आये हैं सैलानी।bd।
हम पँछी परदेसी मुसाफ़िर,
आये हैं सैलानी,
रेवूँ तुम्हारी नगरी में,
जब लग है दाना पानी,
हम पँछी परदेसी मुसाफ़िर,
आये हैं सैलानी।bd।
गायक – हरि पटेल।
प्रेषक – पवन दांगी।
9098006577






बहुत ही शानदार प्रस्तुति मेरे भाई ऐसे ही भजन भेजो और भेजा करो
अंतरात्मा को छूने वाला भजन मेरे भाई आपको धन्यवाद आप दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति करते रहें ।