सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी,
म्हारी प्रीत निभाज्यो जी।bd।
थे छो म्हारा गुण रा सागर,
अवगुण म्हारो मति ध्याजो जी,
लोकन धीजै मन न पतीजै,
मुखडारा सबद सुणाज्यो जी,
साँवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी,
म्हारी प्रीत निभाज्यो जी।bd।
दासी थारी जनम जनम री,
म्हारे आंगणा रमता आज्यो जी,
मीरा के प्रभु गिरधर नागर,
बेड़ो पार लगाज्यो जी,
साँवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी,
म्हारी प्रीत निभाज्यो जी।bd।
सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी,
म्हारी प्रीत निभाज्यो जी।bd।
रचना – मीराबाई।
स्वर – मैथिलि ठाकुर।